Bhai kanhaiya ji biography in punjabi

भाई कन्हैया

कन्हैया

इस चित्र में भाई कन्हैया छत पर एक तकिया के सहारे बैठे हैं। (श्री खाट वारी दरबार, शिकारपुर, सिन्ध)
धर्मसिख धर्म
उपसंप्रदायसेवापन्थी
धार्मिक जीवनकाल
गुरुननुआ बैरागी

भाई कन्हैया (1648-1718) गुरु तेग बहादुर के एक शिष्य थे । गुरु गोबिंद सिंह ने इनसे सिखों के सेवापंथी या अदनशाही सम्प्रदाय की स्थापना करने का अनुरोध किया था। वह युद्ध के मैदान में सभी घायल सदस्यों के ऊपर पानी डालते थी, चाहे वे सिख हों या सिखों के विरुद्ध लड़ रहे हों। [1] सिन्ध में भाई कन्हैया को 'खाट वारो बाओ' और 'खाटवाला बाबा' भी कहते हैं। [2][3][4][5]

अपनी युवावस्था में उन्होंने ननुआ बैरागी की संगति में भी काफी समय बिताया। ननुआ बैरागी पंजाब के एक प्रसिद्ध कवि-फकीर थे [6] और उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्षों में भाई कन्हैया के आध्यात्मिक और मानवीय दृष्टिकोण पर गहरी छाप छोड़ी। [7]

जीवनी

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भाई कन्हैया का जन्म 1648 [8] में सियालकोट क्षेत्र (अब पाकिस्तान में) में वजीराबाद के पास सोधरा के धम्मन खत्री समुदाय में हुआ था। उनके पिता एक सम्पन्न दलाल थे। वह बहुत कम उम्र से ही गरीबों को दान देने की आदत के लिए जाने जाते थे।

अपनी युवावस्था में, कन्हैया की मुलाकात ननुना बैरागी से हुई, जो 9वें गुरु तेग बहादुर का शिष्य थे। [9] ननुआ बैरागी की निकटता के फलस्वरूप कन्हैया को गुरु से मिलने की अनुमति मिली जिसके बाद वे सिख बन गये। [10] कन्हैया वहीं रहकर संगत की सेवा करते रहे। कन्हैया को गुरु का जलवाहक बनाया गया। बाद में वे लंगर में नियुक्त किए गये। उन्होंने गुरु साहिब के घोड़ों की भी देखभाल की। 9वें गुरु की मृत्यु के बाद, 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह, गद्दी पर बैठे और कन्हैया ने उनका अनुसरण करना शुरू कर दिया। मई 1704 में कन्हैया आनंदपुर का दौरा कर रहे थे। उसी समय शहर पर राजपूत सैनिकों और उनके मुगल सहयोगियों ने मिलकर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में भाई कन्हैया अक्सर बकरी की खाल से बनी पानी की थैली से सभी प्यासों को पानी पिलाते हुए दिखते थे। [11] उन्होंने इस सेवा को श्रद्धापूर्वक निभाया। [12] इससे युद्ध के मैदान में सिख योद्धा चिढ़ गए, और गुरु जी से उनकी शिकायत की। तब गुरु ने कन्हैया से पूछा, 'ये सिख कह रहे हैं कि तुम जाकर दुश्मन को पानी पिलाते हो और वे ठीक हो जाते हैं।' कन्हैया ने कहा, 'हां गुरु जी, वे सच कह रहे हैं, किन्तु युद्ध के मैदान में कोई मुगल या सिख नहीं थे, मैंने केवल मनुष्य ही देखे।" [12][13]

इस उत्तर से गुरु जी संतुष्ट हो गये। [12][11] उन्होंने भाई कन्हैया को चिकित्सा सहायता प्रदान की, [12] और बाद में उनके मिशन को सेवा पंथी संप्रदाय के रूप में जाना जाने लगा। [8]

सिंध में

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गुरुजी ने उन्हें सिंध भेजा ताकि वे वहाँ के लोगों के बीच सिख धर्म का प्रचार करें। [14][15][16][17] सिंध में उन्हें स्थानीय तौर पर खाट वारो बाओ या खाटवाला बाबा के नाम से जाना जाता है क्योंकि वह बिस्तर पर बैठकर उपदेश देते थे। [14][15][16][17] शिकारपुर में खत वारी दरबार है जो भाई कन्हैया की स्मृति में बना एक सिंधी मंदिर है। [14] उनके निधन के बाद, भाई सेवा राम सेवापंथी संप्रदाय के प्रमुख के बने। [18] उनके उत्तराधिकारी सिंध में सिख धर्म का प्रचार करते रहे। [14]

अध्यक्ष प्रोफेसर किरपाल सिंह बडूंगर के नेतृत्व में एसजीपीसी ने पहली बार 20 सितंबर, 2017 को भाई कन्हैया जी की जयंती मनाई। इस संदर्भ में, मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार ने भी 20 सितंबर, 2017 को उनके जन्मदिन को मानव सेवा दिवस के रूप में मनाया।

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Ranjit Singh (2013). Golden Crystal. Chandigarh: Unistar Books. पृ॰ 180. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ .
  2. Singh, Inderjeet (24 January 2018). "Sikhi & Sindhis". SikhNet.
  3. Sharma, T. R. (2005). Maharaja Ranjit Singh: Ruler dowel Warrior. Publication Bureau, Panjab University. पृ॰ 99. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ .
  4. Proceedings - Punjab Account Conference, Volume 27, Part 1. Department of Punjab Historical Studies, Punjabi University. 1991. पृ॰ 63. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ .
  5. Malkani, K. R. (1984). The Sindh Story. Allied. पृ॰ 152.
  6. Gurbachan Singh Talib (1973). Rose-garden of the Punjab: English renderings from Punjabi folk poetry. Punjabi University. पृ॰ 106.
  7. "Bhai Kanhaiya would have hardly stepped in his teens that yes, fortuitously, came across saint Nanua, an eminent gnostic and a heavenly-minded man. His company and precepts had lasting effect ditch his delicate mind." Bhai Kanhaiya, Beacon-light of Humanitarian Service & the Apostle of Peace, Chapter 6- A Contact with Bhakt Nanua, p. 19, Bhagata Singha Hīrā, Published by Sewa Jyoti Publications, 1988
  8. Dilagīra, Harajindara Siṅgha (1997). The Sikh Reference Book (1st संस्करण). Edmonton, Alb., Canada: Sikh Educational Trust for Adherent University Centre, Denmark. पृ॰ 602. OCLC 37769917. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ . सन्दर्भ त्रुटि: अमान्य टैग है; ":0" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  9. Bhagata Siṅgha Hīrā (1988). "Ch. 6. A Contact obey Bhakt Nanua". Bhai Kanhaiya, Beacon-light of Humanitarian Service & description Apostle of Peace. Sewa Jyoti Publications. पृ॰ 19.
  10. ↑Hīrā, B. S.. Ch. 6, “A Contact with Bhakt Nanua. Bhai Kanhaiya”, Beacon-light of Humanitarian Service & the Apostle of Peace. Sewa Jyoti Publications, 22-23.1988
  11. Burra, Srinivas. "Collective Engagement and Selective Endorsement: India’s Ambivalent Attitude Towards Laws of Armed Conflict." Locating India down the Contemporary International Legal Order (2018): 51-65.
  12. Jammu, Dilpreet Singh. "Compassion in Sikhism: A scriptural, traditional and historical perspective." Compassion in the 4 (2016): 266-274.
  13. ↑जब गुरु गोविन्द सिंह ने भाई कन्हैया को गले लगाया।
  14. Singh, Inderjeet (24 January 2018). "Sikhi & Sindhis". SikhNet.
  15. Sharma, T. R. (2005). Maharaja Ranjit Singh: Ruler and Warrior. Publication Bureau, Panjab University. पृ॰ 99. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ .
  16. Proceedings - Punjab History Conference, Volume 27, Part 1. Department glimpse Punjab Historical Studies, Punjabi University. 1991. पृ॰ 63. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ .
  17. Malkani, K. R. (1984). The Sindh Story. Allied. पृ॰ 152.
  18. Singh, Harbans (1992–1998). The Encyclopaedia of Sikhism. 3, M-R. Patiala: Punjabi University. पृ॰ 299. OCLC 29703420. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ .